Manuscript Number : SHISRRJ24753
किन्नर एक ऐतिहासिक अध्ययन
Authors(1) :-संजय कुमार यादव
अगर कहा जाए कि समाज हमारे पूर्ण रूप से दो स्तंभों पर खड़ा है, तो इसे मानने में किसी को कोई हर्ज नहीं होगा, क्योंकि यही सच्चाई है कि जिन दो स्तंभों की बात कर रहे हैं, वही स्त्री और पुरुष पर समाज आगे बढ़ता है। लेकिन यह कहना कि संसार में यही दो लिंगों का अस्तित्व है, सर्वथा अनुचित होगा। कारण, इन दोनों लिंगों के अलावा भी प्रकृति ने एक अन्य प्रजाति को बनाने का प्रयास किया और सफलता भी प्राप्त की, जिन्हें समाज में थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता प्राप्त है और विभिन्न उपमाओं से संबोधित किया जाता है, जैसे कि किन्नर, हिजड़ा, छक्का, नपुंसक, नामर्द आदि। ये प्राकृतिक रूप से न तो पुरुष होते हैं और न ही नारी। इनमें सामान्य रूप से पुरुष और स्त्री दोनों के गुण विद्यमान होते हैं। इसलिए आम जीवन यापन करने के लिए लोग उन्हें जानने की इच्छा रखते हैं। किन्नर के वर्णन की बात करें, तो आज आधुनिक युग में ही नहीं, इनका उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में भी मिलता है। किंतु उनके संबंध में संपूर्ण जानकारी हेतु कोई भी किसी प्रकार का औपचारिक प्रबंध नहीं है। उनके विषय में मात्र इतना ही हमें उल्लेख मिलता है कि किन्नर भी यक्षों और गंधर्वों की भांति नृत्य-गान की कला में परिपक्व होते हैं।
संजय कुमार यादव
Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 5 | September-October 2024 Article Preview
शोधार्थी
Date of Publication : 2024-10-20
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 08-12
Manuscript Number : SHISRRJ24753
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ24753