Manuscript Number : SHISRRJ25813
प्राचीन भारत के साहित्य के विकास में महिलाओं के योगदान का अध्ययन जय प्रकाश यादव (असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, इतिहास)
Authors(1) :-Dr. B. R. Ambedkar
किसी भी समाज के उत्थान के लिए महिला पुरुष दोनों को मिलकर कार्य करना चाहिए। गाँधी जी ने कहा था कि "जिस समाज की आधी आबादी खाली बैठी रहेगी तो उस समाज का उत्थान कैसे सम्भव हो सकता है।" इसी प्रकार स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि "समाजरूपी गरुड़ के महिला और पुरुष दो पंख होते हैं। यदि एक पंक्ष सबल तथा दूसरा दुर्बल हो तो उसमें गगन को छूने की शक्ति कैसे निर्मित होगी।" विश्व के किसी भी राष्ट्र की संस्कृति का मापदण्ड या सृष्टि का मेरुदण्ड महिलाओं को ही माना गया है। भारत का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन प्राचीन काल से ही वैभवपूर्ण रहा है. जिसे बनाने में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। महिलाएँ शिक्षा प्राप्त करके समाज के उत्थान के लिए कार्य करती थी, उन्हें संहिताओं में बहवृची (संहिताओं के अधिकाधिक मन्त्रों की पण्डिता), अपिशाला (अपिशलि के व्याकरण की अध्ययनकत्री), कठी (कठशाखा का अध्ययन करने वाली) इत्यादि कहा गया है। वह वेदों को जानने वाली होती थी, ऋग्वेद में उन्हें 'चतुष्कोण वेदों की निर्माण प्रक्रिया अर्थात यज्ञ के गूढ़ ज्ञान को समझने वाली कहा है। महिलाएँ वैदिक शिखा के साथ युद्धविद्या, परा एवं अपरा विधाएँ, गणित, शिल्प, गीत, संगीत, नृत्य आदि की शिक्षा लेकर समाज में पुरुषों के समान कार्य करती थी। बुद्धिमती तथा विद्वान कन्या माता-पिता के लिए आदर्श मानी जाती थी। ऋग्वेद में घोषा एवं बप्रिमती को प्रभूत बुद्धिशालिनी कहा जाता है, समाज में बुद्धिमती कन्या को उचित सम्मान प्रदान था।
Dr. B. R. Ambedkar
साहित्य, पंडिता, शिक्षक, शब्दकोश, शैलियाँ, थेरीगाथा, मंत्रदृष्टि, विदुषी आदि। Publication Details Published in : Volume 8 | Issue 1 | January-February 2025 Article Preview
Government Degree College Audenya Padariya Mainpuri, Uttar Pradesh, India
Date of Publication : 2025-01-29
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 16-21
Manuscript Number : SHISRRJ25813
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ25813