Manuscript Number : SHISRRJ25817
गंगा का पौराणिक स्वरूप-उद्गम एवं आख्यान
Authors(1) :-डाॅ0 प्राची अग्रवाल सम्पूर्ण विश्व जड़ चेतन का मिश्रित स्वरूप है। जड़ वस्तुओं में जितनी शक्तियाँ देखने को मिलती है, वे सब दैवी शक्ति के आश्रय से ही सम्भव होती है। वही दैवी शक्ति संसार का संरचन, पालन व विध्वंस करती है। जल वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी के इन पंच महाभूतों में जो भी शक्ति है उसकी अधिष्ठातृ कोई न कोई चेतन शक्ति अवश्य है, इन्हीं चेतन शक्ति के अधिष्ठातृत्व से जड़ शक्तियाँ कार्य करने में समर्थ होती है। इसीलिए वह ‘देव’ या ‘देवी’ शब्द से व्यवहृत होती हैं। गंगाजल के भीतर भी चैतन्य रूपा गंगादेवी विराजमान न होती तो इनके स्पर्श से राजा सगर के साठ हजार पुत्रों की मुक्ति न हुई होती। असंख्य जीवों का कल्याण, उनकी मुक्ति, मन व आत्मा को पवित्र करने की शक्ति माँ गंगा की ही देन है। गंगा ‘हर-हर’ की अहोरात्र गर्जना के साथ पृथ्वी पर अवतरित होती है। हिमालय स्थित उस उद्गम स्थान की कल्पनामात्र भी मनुष्य के अति क्षुब्ध अन्तःकरण को क्षणमात्र में विलक्षण शान्ति का अनुभव करा देती हैं। गंगा का उद्गम स्थल ‘गोमुख’ है, गोमुख में गंगा कहाँ से प्रकट होती हैं, यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। गंगा तो इस हिमपर्वत पर हिमरूप में प्राप्त होकर तरल रूप में प्रवाहित होती है। भारत के अनेक स्थलों को आप्लावित करती हुई गंगासागर में विलीन हो जाती है। समस्त वैदिकग्रन्थ, पुराण, साहित्य माँ गंगा की अखण्ड महिमा का गान करते हैं। सभी पुराणों में उनसे सम्बन्धित आख्यान प्राप्त होते हैं। माँ गंगा के पतितपावनी रूप का शतयोजन दूर रहकर भी स्मरण करता है। वह ‘मुंच्यते सर्वपापेभ्यः विष्णुलोकं स गच्छति’ मुक्त होकरं विष्णुलोक को चला जाता है।
डाॅ0 प्राची अग्रवाल गंगा, पौराणिक, आख्यान, आकाश, गोमुख, पुराण, साहित्य, हिमालय। Publication Details Published in : Volume 8 | Issue 1 | January-February 2025 Article Preview
सहायक आचार्य, मुलतानीमल मोदी काॅलिज मोदीनगर, गाजियाबाद।
Date of Publication : 2025-02-10
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 39-43
Manuscript Number : SHISRRJ25817
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ25817