भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में वेदों में राष्ट्रीय भावना

Authors(1) :-डॉ. वन्दना द्विवेदी

ऋग्वेद की संस्कृति हमें जीने का सहीढंग कितनी स्पष्टता से बताती है वेद के ऋषि कहते हैं हम अपने कानों से अच्छी बातें सुन अपनी आंखों से शुभ एवं कल्याणकारी चीजों का दर्शन करें अपने शुद्ध अंगों से लोक कल्याण में ही अपना जीवन यापन करें हमारे कानों में अच्छे बुरे सभी प्रकार के शब्द आते हैं किंतु यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस बात पर ध्यान देते हैं इसी प्रकार हमारी आंखों के आगे अच्छे बुरे सभी प्रकार के दृश्य आते रहते हैं किंतु हम अपने रुचि के अनुसार उसे पर ध्यान देते हैं हमारी इच्छा शक्ति यानी विल पावर हमें इस चैनल में सहायता देती है सेवा भाव कल्याणकारी प्रवृत्ति है किंतु इसके लिए प्राथमिक आवश्यकता एक स्वस्थ और सबल शरीर की होती है इस वैदिक श्रुति में यही प्रार्थना की गई है।

Authors and Affiliations

डॉ. वन्दना द्विवेदी
सह-आचार्य, संस्कृत विभाग, नवयुग कन्या महाविद्यालय राजेन्द्र नगर लखनऊ, सदस्य -उत्तर प्रदेश संस्कृत माध्यमिक शिक्षा परिषद्

वेद, राष्ट्रीय, भावना, भारतीय, ज्ञान-परंपरा, संस्कृति।

  1. ऋग्वेद 1/89/4
  2. अथर्ववेद 12/1/90
  3. यजुर्वेद 18/48
  4. ऋग्वेद 10/191/2
  5. 10/191/3
  6. 10/191/4
  7. अथर्ववेद12/1/12
  8. ऋग्वेद 1/89/4
  9. अथर्ववेद 12/1/90
  10. यजुर्वेद 18/48
  11. ऋग्वेद 10/191/2
  12. 10/191/3
  13. 10/191/4
  14. अथर्ववेद12/1/12

Publication Details

Published in : Volume 8 | Issue 2 | March-April 2025
Date of Publication : 2025-04-12
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 134-138
Manuscript Number : SHISRRJ258225
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. वन्दना द्विवेदी, "भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में वेदों में राष्ट्रीय भावना ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 8, Issue 2, pp.134-138, March-April.2025
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ258225

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