इस्लाम में संगीत की परम्परा और पारिजात

Authors(1) :-ज़ेबी फ़रहा

संगीत एक ऐसी कलात्मक अभिव्यक्ति है जिसमें लय, ताल, स्वर और अन्य ध्वनियों का संयोजन होता है। संगीत का इतिहास मानव के इतिहास से जुड़ा है। अरब में संगीत की एक सुदृढ़ और समृद्ध परंपरा मौजूद थी। इस्लाम के फैलने के साथ-साथ यह परंपरा भी दूसरे देशों में पहुंची। अरबी संगीत ने विश्व भर में अपनी छाप छोड़ी और विभिन्न संस्कृतियों के साथ मिलकर नई संगीत शैलियों को जन्म दिया। पारिजात उपन्यास में संगीत के सामाजिक प्रभाव का उल्लेख है जो यह दर्शाता है कि संगीत न केवल एक कला है बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधि भी है जो अलग-अलग समुदाय को एक साथ लाती है। पारिजात उपन्यास के माध्यम से इस्लाम में संगीत की सुदृढ़ परंपरा का पता चलता है।

Authors and Affiliations

ज़ेबी फ़रहा
शोधार्थी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली

इस्लाम, अरबी संगीत, भारतीय संगीत, भारतीयइस्लामी संस्कृति, मर्सिया, कव्वालीऔर नोहा।

  1. उमेश जोशी, भारतीय संगीत का इतिहास,सरोवर प्रकाशन प्रतिष्ठान, 1969, फिरोजाबाद, पृष्ठ-46
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  17. नासिरा शर्मा, पारिजात, किताब घर प्रकाशन, 1969, नई दिल्ली, पृष्ठ-339

Publication Details

Published in : Volume 8 | Issue 3 | May-June 2025
Date of Publication : 2025-05-08
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 01-07
Manuscript Number : SHISRRJ258311
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

ज़ेबी फ़रहा, "इस्लाम में संगीत की परम्परा और पारिजात ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 8, Issue 3, pp.01-07, May-June.2025
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ258311

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