जैन दर्शन में वर्णित कर्म की उपयोगिता:एक अनुशीलन

Authors(1) :-इन्दल

दर्शनों में कर्म-फल सिद्धान्त में गहरी समानता होने पर भी जैन दर्शन में मान्य कर्म के पौद्गलिक रूप को अन्य किसी भी दर्शन ने स्वीकार नहीं किया है। अन्य दर्शनों में यह क्रिया का पर्यायवाची है जबकि जैन दर्शन में यह क्रिया के साथ-साथ क्रिया का हेतु भी है जो पुद्गल रूप है और आत्मा के साथ बँधकर उसके दुःख और पारतन्त्र्य का कारण होता है। न केवल वैदिक एवं बौद्ध दर्शन, वरन् सांख्यादि षड्दर्शनों ने भी कर्म को पुद्गल रूप मानने पर जैन मत की पर्याप्त निन्दा एवं आलोचना की है।

Authors and Affiliations

इन्दल
पूर्व शोधच्छात्र, बी.आर.डी.बी.डी.पी.जी. कालेज, आश्रम बरहज, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत।

जैन दर्शन, कर्म, फल, सिद्धान्त, पुद्गल, निन्दा, आलोचना।

  1. ‘‘सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलानाक्ष्ते स बन्धः।’’
  2. -तत्त्वार्थसूत्र - 8.2
  3. तत्त्वार्थसूत्र - 8.2
  4. राजवार्तिक- 8.2.2-8
  5. ‘‘कायवांगमनःकर्म योगः।’’ - तत्त्वार्थसूत्र - 6.1
  6. योग का अर्थ समाधि और ध्यान भी होता है परन्तु यहाँ केवल ‘क्रियारूप’ अर्थ ग्रहण किया गया है।- राजवार्तिक-6.1.12
  7. ‘‘स आस्रवः।’’ - तत्त्वार्थसूत्र - 6.2
  8. राजवार्तिक-6.2.4-5
  9. ‘‘आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तरायः।’’- तत्त्वार्थसूत्र -8.4
  10. राजवार्तिक-8.4.1
  11. ‘‘उपयोगो लक्षणम्।’’ - तत्त्वार्थसूत्र - 2.8
  12. ‘‘जीवो उवओगमओ, उवओगो णाणदंसणो होई।’’ -नियमसार-10
  13. जैन तत्त्वविद्या- पृष्ठ 327
  14. जैन तत्त्वविद्या- पृष्ठ 328
  15. जैन तत्त्वविद्या- पृष्ठ 329
  16. राजवार्तिक-8.10.2
  17. ‘‘गदिआदि जीवभेदं देहादी पोग्गलाण भेदं च।
  18. गोम्मटसार, कर्मकाण्ड-12
  19. स्थानांग-2.4.105
  20. ‘‘जह कुंभारो भंडाइं कुणइ पुज्जेराइं लोयस्स।
  21. इय गोयं कुणइ जियं, लेए पुज्जेयरानत्थं।।’’-स्थानांग-2.4.106
  22. स्थानांग-2.4.105
  23. पंचाध्यायी-1007
  24. तत्त्वार्थसूत्र- 6.2, 8.2
  25. ब्रह्मसूत्र, शांकर भाष्य- 2.1.14
  26. द्रष्टव्य- डा0 रतन लाल जैन- ‘जैन कर्म-सिद्धान्त और मनोविज्ञान’, पृष्ठ 4-5

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 1 | January-February 2018
Date of Publication : 2018-02-28
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 109-114
Manuscript Number : SISRRJ181897
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

इन्दल, "जैन दर्शन में वर्णित कर्म की उपयोगिता:एक अनुशीलन ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 1, pp.109-114, January-February.2018
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ181897

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