Manuscript Number : SISRRJ181897
जैन दर्शन में वर्णित कर्म की उपयोगिता:एक अनुशीलन
Authors(1) :-इन्दल दर्शनों में कर्म-फल सिद्धान्त में गहरी समानता होने पर भी जैन दर्शन में मान्य कर्म के पौद्गलिक रूप को अन्य किसी भी दर्शन ने स्वीकार नहीं किया है। अन्य दर्शनों में यह क्रिया का पर्यायवाची है जबकि जैन दर्शन में यह क्रिया के साथ-साथ क्रिया का हेतु भी है जो पुद्गल रूप है और आत्मा के साथ बँधकर उसके दुःख और पारतन्त्र्य का कारण होता है। न केवल वैदिक एवं बौद्ध दर्शन, वरन् सांख्यादि षड्दर्शनों ने भी कर्म को पुद्गल रूप मानने पर जैन मत की पर्याप्त निन्दा एवं आलोचना की है।
इन्दल जैन दर्शन, कर्म, फल, सिद्धान्त, पुद्गल, निन्दा, आलोचना। Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 1 | January-February 2018 Article Preview
पूर्व शोधच्छात्र, बी.आर.डी.बी.डी.पी.जी. कालेज, आश्रम बरहज, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2018-02-28
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 109-114
Manuscript Number : SISRRJ181897
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ181897