Manuscript Number : SHISRRJ214327
वेदों में प्रतिबिम्बित संगीत
Authors(1) :-डाॅ0 रोमा अरोरा भारत की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वाङ्मय एवं सबसे प्राचीन, नियमित, सुसंबद्ध संगीत हमें वैदिक काल में ही मिलता है। वैदिक युग का प्रारम्भ आर्यों के आगमन से ही माना जाता है। इस काल में संगीत की बागडोर ब्राह्मणों के हाथ में थी। वे ही वेदाध्ययन कर धार्मिक संस्कार सम्पन्न कराते थे। ब्राह्म ऋत्विज संगीत शिक्षा भी दिया करते। गायन, वादन तथा नृत्य तीनों का विकास वैदिक युग में हुआ। वेदचतुष्टयी में गीत के अनेक प्रकार स्तोम, स्त्रोत, गाधिन, गायत्रिन, साम आदि का उल्लेख मिलता है। इस काल में वीणा वादन के अतिरिक्त शंख, मेरी दुंदुभि, तूणव, वाण आदि प्रचलित थे। वैदिक वाङ्गमय में वर्णित उदात्तः अनुदात्त एवं स्वरित के आधार पर ही पाणिनी ने सप्तस्वरों को व्यहृत किया। इस काल में आर्यों ने संगीत को धर्म के आवरण में लपेट कर गंगाजल के समान पवित्र कर दिया।
डाॅ0 रोमा अरोरा नाद, ब्रह्मानन्द, सहोदर, गीर, गातु, सामगान, अर्चिक, गाधिक सालिक। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 3 | May-June 2021 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर-संगीत गायन, राजा मोहन गल्र्स पी0जी0 कालेज, अयोध्या, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2021-06-10
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 149-154
Manuscript Number : SHISRRJ214327
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214327