वेदों में प्रतिबिम्बित संगीत

Authors(1) :-डाॅ0 रोमा अरोरा

भारत की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वाङ्मय एवं सबसे प्राचीन, नियमित, सुसंबद्ध संगीत हमें वैदिक काल में ही मिलता है। वैदिक युग का प्रारम्भ आर्यों के आगमन से ही माना जाता है। इस काल में संगीत की बागडोर ब्राह्मणों के हाथ में थी। वे ही वेदाध्ययन कर धार्मिक संस्कार सम्पन्न कराते थे। ब्राह्म ऋत्विज संगीत शिक्षा भी दिया करते। गायन, वादन तथा नृत्य तीनों का विकास वैदिक युग में हुआ। वेदचतुष्टयी में गीत के अनेक प्रकार स्तोम, स्त्रोत, गाधिन, गायत्रिन, साम आदि का उल्लेख मिलता है। इस काल में वीणा वादन के अतिरिक्त शंख, मेरी दुंदुभि, तूणव, वाण आदि प्रचलित थे। वैदिक वाङ्गमय में वर्णित उदात्तः अनुदात्त एवं स्वरित के आधार पर ही पाणिनी ने सप्तस्वरों को व्यहृत किया। इस काल में आर्यों ने संगीत को धर्म के आवरण में लपेट कर गंगाजल के समान पवित्र कर दिया।

Authors and Affiliations

डाॅ0 रोमा अरोरा
एसोसिएट प्रोफेसर-संगीत गायन, राजा मोहन गल्र्स पी0जी0 कालेज, अयोध्या, उत्तर प्रदेश।

नाद, ब्रह्मानन्द, सहोदर, गीर, गातु, सामगान, अर्चिक, गाधिक सालिक।

  1. मतंग, वृहद्देशी श्लोक 16
  2. शारंगदेव, संगीत रत्नाकर 1-2
  3. शारंगदेव: संगीत रत्नाकर, प्रथम अध्याय, श्लोक 21
  4. द्र0 पूर्व मेघ, 56 (वही)
  5. प्राप्त-पृ0सं0 4 भारतीय संगीत का इतिहास शरद्चन्द्र परांजये
  6. स्वतन्त्र शर्मा, भारतीय संगीत एक ऐतिहासिक विश्लेषण, पृ0 8
  7. राम अवतार वीर, भारतीय संगीत प्रथम भाग, पृ0 42
  8. डाॅ0 शरद चन्द्र परांजपे यास्क के अनुसार स्त्रोम गायन की विधि अत्यन्त प्राचीन है ऋषि दर्शनात् स्तोमान ददर्श“ (नैगमकाण्ड 2-11) प्राप्त भारतीय संगीत का इतिहास,
    1. पृ0 45
  9. डाॅ0 शरद् चन्द्र परांजये’ भारतीय संगीत का इतिहास, पृ0 27
  10. वही, पृ0 38
  11. स्वतन्त्र शर्मा भारतीय संगीत का इतिहास, पृ0 14
  12. संगीत, मार्च 89

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 3 | May-June 2021
Date of Publication : 2021-06-10
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 149-154
Manuscript Number : SHISRRJ214327
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 रोमा अरोरा, "वेदों में प्रतिबिम्बित संगीत", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 3, pp.149-154, May-June.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214327

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